जीवन में सबसे बड़ा आचरण :सम्मान -
पुराने जमाने की बात है एक राज्य में देव मित्र नाम के राजपुरोहित थे | राजा उनकी हर बात मानते थे एक दिन राजपुरोहित के मन में सवाल उठा कि राजा और दूसरे लोग मेरा इतना सम्मान और आदर क्यों करते हैं | इसका कारण क्या है |
अपने इस प्रश्न का उत्तर पाने के लिए राजपुरोहित ने एक योजना बनाई उन्होंने राजा के राजकोष से एक सोने की मुद्रा चुरा ली | राज पुरोहित को यह काम करते हुए एक मंत्री ने देख लिया लेकिन उसने ध्यान नहीं दिया राजपुरोहित ने दूसरे दिन वहां से सोने की 2 मुद्रा और चुरा ली सैनिक ने फिर भी ध्यान नहीं दिया |
तीसरे दिन राजपुरोहित ने राजकोष से एक मुट्ठी भर स्वर्ण मुद्राएं चुरा ली इस बार कोषाधिकारी ने राजपुरोहित को पकड़कर सैनिकों के हवाले कर दिया और उनका मामला राजा तक पहुंचा दिया राजा ने अपना निर्णय सुनाते हुए राजपुरोहित को 3महीने की जेल की सजा सुनाई |
राजपुरोहित ने राजा से निवेदन किया महाराज मैं चोर नहीं हूं | मैं यह जानना चाहता था कि आपके द्वारा मुझे जो सम्मान दिया जाता है उसका सही अधिकारी कौन है ????मैं ,मेरी योग्यता, ज्ञान ,या सदा
आज सभी लोग समझ गए हैं कि सदाचरण यानी अच्छा आचरण छोड़ते मैं दंड का अधिकारी बन गया |
सदाचार और नैतिकता ही मेरे सम्मान का मूल कारण है |
हमें अपने सम्मान की रक्षा करनी चाहिए | व्यक्ति के जीवन में इज्जत और सम्मान से बढ़कर कुछ नहीं है
| हम जो भी काम करें उसको पूरी इमानदारी से करना चाहिए ताकि आगे जाकर लोग हमें याद करें | व्यक्ति को किसी चीज पर इतना घमंड नहीं करना चाहिए |
अगर सम्मान या इज्जत एक बार खराब हो जाती है तो दोबारा पाना मुश्किल है |
पुराने जमाने की बात है एक राज्य में देव मित्र नाम के राजपुरोहित थे | राजा उनकी हर बात मानते थे एक दिन राजपुरोहित के मन में सवाल उठा कि राजा और दूसरे लोग मेरा इतना सम्मान और आदर क्यों करते हैं | इसका कारण क्या है |
अपने इस प्रश्न का उत्तर पाने के लिए राजपुरोहित ने एक योजना बनाई उन्होंने राजा के राजकोष से एक सोने की मुद्रा चुरा ली | राज पुरोहित को यह काम करते हुए एक मंत्री ने देख लिया लेकिन उसने ध्यान नहीं दिया राजपुरोहित ने दूसरे दिन वहां से सोने की 2 मुद्रा और चुरा ली सैनिक ने फिर भी ध्यान नहीं दिया |
तीसरे दिन राजपुरोहित ने राजकोष से एक मुट्ठी भर स्वर्ण मुद्राएं चुरा ली इस बार कोषाधिकारी ने राजपुरोहित को पकड़कर सैनिकों के हवाले कर दिया और उनका मामला राजा तक पहुंचा दिया राजा ने अपना निर्णय सुनाते हुए राजपुरोहित को 3महीने की जेल की सजा सुनाई |
राजपुरोहित ने राजा से निवेदन किया महाराज मैं चोर नहीं हूं | मैं यह जानना चाहता था कि आपके द्वारा मुझे जो सम्मान दिया जाता है उसका सही अधिकारी कौन है ????मैं ,मेरी योग्यता, ज्ञान ,या सदा
आज सभी लोग समझ गए हैं कि सदाचरण यानी अच्छा आचरण छोड़ते मैं दंड का अधिकारी बन गया |
सदाचार और नैतिकता ही मेरे सम्मान का मूल कारण है |
हमें अपने सम्मान की रक्षा करनी चाहिए | व्यक्ति के जीवन में इज्जत और सम्मान से बढ़कर कुछ नहीं है
| हम जो भी काम करें उसको पूरी इमानदारी से करना चाहिए ताकि आगे जाकर लोग हमें याद करें | व्यक्ति को किसी चीज पर इतना घमंड नहीं करना चाहिए |
अगर सम्मान या इज्जत एक बार खराब हो जाती है तो दोबारा पाना मुश्किल है |
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