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Thursday, 1 March 2018

अपने मन की पाठशाला, हमारी प्रथम पाठशाला परिवार

अपने मन की पाठशाला-
                                 जीवन का आधार होती है मन की इच्छाएं, स्नेह,प्रेम ,संवेदना                                               तथा सपने देखना केवल मन को ही आता है| 
 बुद्धि तो स्वार्थ और अहंकार से ही होती है संकुचन का भाव होता है मन में विश्व समा  सकता है|  शिक्षा में मन का प्रशिक्षण होता ही नहीं मन इंद्रियों का राजा है सारे विषय मन से ही जुड़े होते हैं | 

उसे ही अच्छे बुरे लगते हैं मन एक पूजा घर है, मंदिर है | यह बात कौन पढ़ाता है यही मन आत्मा से भी जोड़  सकता  है मन ही हमारे जीवन का केंद्र है परिवार भी इस मन की पाठशाला है | जहां हर व्यक्ति का सम्मान होता है, मिठास होती है सुख-दुख बांटा जाता है|  स्थान उदारता और अश्लीलता लेती है यही व्यक्ति के निर्माण की पूर्णता का मार्ग है|

                                                          जीवन में शिक्षा की भागीदारी [भूमिका ]
            शिक्षा हमको भोगवादी बनाती है | यह आर्थिक सत्ता पर केंद्रित है व्यक्ति धन के आगे छोटा हो गया है | उसके शरीर बुद्धि और मन तीनों बिकाऊ हो गए हैं संयुक्त परिवार में व्यक्ति के अनेकों संबंध होते हैं वह पुत्र भी ,पिता भी, और भाई भी ,चाचा मामा भी है इसी प्रकार महिलाओं के संबंध भी है |

इन सबके साथ निभाना ही जीवन का समर्पण भाव है लेकिन आजकल ऐसा नहीं है हर व्यक्ति अपना छोटा सा एकल परिवार पसंद करता है | जिसमें वह और उसके बच्चे होते हैं यही भाव पति-पत्नी को बांध रखता है | 
शिक्षित व्यक्ति मन का धरातल छोड़कर बुद्धि बल से जीता है वह दिल से किसी के भी काम आ नहीं सकता परिवार में परिवार के लोगों के लिए उस व्यक्ति के मन कोई स्थान नहीं होता है | 

                                                           आजकल के परिवार -
                         आजकल परिवार का आधुनिक स्वरुप ही अपूर्ण है | इनमें ने संस्कृति दिखाई देती है और ना ही सभ्यता का विकास यह तो जीवन का ठहराव बन जाता है इसमें जीवन का गति रुक जाती है |
 जीवन ग्रस्त आश्रम के आगे बढ़ता ही नहीं है न वानप्रस्थ ,सन्यास तक सामाजिक संतुलन की कल्पना भी नहीं की जा सकती | आध्यात्मिक विकास की भूमि तैयार नहीं हो सकती जीवन अर्थ और काम के बीच  झूलता रहता है तो मोक्ष चिंतन का विषय ही नहीं होता पुनर्जन्म से बाहर निकले संयुक्त परिवार में संस्कारों का आदर्श उत्तर है संगति कारण वातावरण एवं संक्रमण है कहते हैं ''जैसी संगति बैठिए तै सोई फल दीन ''जो कुछ भी देर नहीं तो भी जो कुछ गंधी दे नहीं तो वास सुवास |

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