रायथान से राजस्थान नाम कैसे व किसने रखा -
भारतीय स्वतंत्रता से पूर्व राजस्थान का नाम राजनीतिक इकाई के रूप में राजपूताना के नाम से भी जाना जाता था | विभिन्न भागों के नाम तथा विभिन्न स्वतंत्र राज्य थे | कर्नल जेम्स टॉड ने इस प्रदेश को रजवाड़ा राजस्थान का नाम दिया था | जिसका अर्थ था ''राजपूतों का स्थान '' |
1791 मैं जोधपुर के महाराजा भीम सिंह ने मराठों के विरुद्ध संयुक्त कार्रवाई करने के लिए जयपुर नरेश को लिखे गए पत्र में ''राजस्थाना ''अर्थार्थ [राजधानियों] में एकता की इच्छा प्रकट की थी | अतः कहा जाता है कि टॉड के पहले भी राजस्थान संज्ञा प्रचलित रही थी| मुगल इतिहासकार राजपूत को बहुवचन में राजपूता शब्द लिखते थे| इसलिए अंग्रेजों ने इस राज्य का नाम राजपूताना अथार्थ राजपूतों का देश रखा | आगे चलकर राज्य की इस लौकिक संज्ञा को ही बदलकर राजस्थान कर दिया |
राजस्थान की भौगोलिक स्थिति -
राजस्थान भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तरी -पश्चिमी दिशा की ओर स्थित है | इसका समस्त भू -भाग कर्क रेखा के उत्तर में है | किंतु जलवायु की दृष्टि से यह दक्षिण- पश्चिम एशिया के उष्ण -कटिबंधीय मरुस्थलो जैसा है | इस राज्य का क्षेत्रफल 3,42,239 वर्ग किलोमीटर है तथा क्षेत्रफल की दृष्टि से देश का सबसे बड़ा राज्य है जबकि जनसंख्या की दृष्टि से इसका आठवां स्थान है |
राजस्थान का आकार अनियमित समचतुर्भुज या पतंग जैसा है| यदि इसके आकार की तुलना विश्व के देशों से की जाये तो इसका क्षेत्रफल जिंबाब्वे तथा जापान से कुछ ही कम है | किंतु यूनाइटेड- किंगडम[ब्रिटेन ] पोलैंड इटली , कांगो आदि से कही अधिक है| इस राज्य की तुलना आकृति में फ्रांस से की जा सकती है जो राजस्थान से सवा गुना बड़ा | राज्य के पश्चिम उत्तर पश्चिम में पाकिस्तान, उत्तर पूर्व में पंजाब ,उत्तर पूर्व और पूर्व में उत्तर प्रदेश ,हरियाणा तथा दिल्ली और दक्षिण में मध्य प्रदेश और गुजरात है| प्रशासनिक दृष्टि से राजस्थान 33 जिलों में विभक्त है | यह सभी जिले राजस्थान के निर्माण के पूर्व तक 19 रियासते तथा 1 केंद्र शासित प्रदेश में वर्गीकृत थे |
भू -आकृति के रूप में राजस्थान अनेक विविधताओं का प्रदेश है जिसमें एक और रेगिस्तान का विस्तार है तो दूसरी और और मैदान और पठारी भाग है | संसार की सबसे पुरानी पर्वतमाला अरावली से राज्य में है| चंबल बनास नदी वर्ष भर बहती रहती है | देती है | वनस्पति भी भूमि में के स्वरूप के अनुसार अलग-अलग है | संक्षेप में राजस्थान की भौगोलिक स्थिति इस प्रकार है-
पर्वतीय प्रदेश राजस्थान की पर्वत श्रेणियां इसे दो भागों में बांटती है | यह संपूर्ण श्रेणियां अरावली पर्वतमाला के नाम से पुकारी जाती है| यह उत्तर पूर्व में दिल्ली के पास से दक्षिण पश्चिम में गुजरात तक राजस्थान को तिरछी पार करती है |
अजमेर तक अरावली पर्वत के रूप में उठता हुआ उदयपुर, बांसवाड़ा ,डूंगरपुर ,प्रतापगढ़, मांडलगढ़ ,बूदी, कोटा, झालावाड़ की ओर से श्रंखलाओ मैं फैल गया है | अरावली पर्वत की सबसे ऊंची पहाड़ी- चोटी माउंट आबू की गुरु शिखर है| इसकी ऊंचाई समुद्र तल से 1722 मीटर है | यह हिमालय तथा नीलगिरी पर्वत माला के मध्य सबसे ऊंची चोटी है | जोधपुर में अरावली छितराई हुई छोटी-छोटी पहाड़ीयो सा फैला हुआ और जैसलमेर में ऊँचे टीलों के रूप में दिखाई देता है |
पठारी भाग-
राजस्थान का पठार "हाड़ौती के पठार" के नाम से प्रसिद्ध है | यह चित्तौड़ से बेंगू, बिजोलिया, मांडलगढ़ तथा हाड़ौती के समीप भू -भाग पर फैला हुआ है| इसका ढाल दक्षिण से उत्तरऔर पूर्व कि और है |
यह पठार पुनः दो उपभागो - विंध्य कगार और दक्षिणी पूर्वी लावा प्रदेश में बांटा गया है| पहला भाग केवल बालू का पत्थर का है| जबकि दूसरा ठोस बालूका पत्थर का है | दक्षिण-पूर्वी लावा प्रदेश में तीन कठोर कगारों से बना होने से" त्रिपठार" से जाना जाता है| इसे 'उपरमाल' कहते हैं|
इससे आगे की जानकारी आपको अगले पेज पर मिलेगी
भारतीय स्वतंत्रता से पूर्व राजस्थान का नाम राजनीतिक इकाई के रूप में राजपूताना के नाम से भी जाना जाता था | विभिन्न भागों के नाम तथा विभिन्न स्वतंत्र राज्य थे | कर्नल जेम्स टॉड ने इस प्रदेश को रजवाड़ा राजस्थान का नाम दिया था | जिसका अर्थ था ''राजपूतों का स्थान '' |
1791 मैं जोधपुर के महाराजा भीम सिंह ने मराठों के विरुद्ध संयुक्त कार्रवाई करने के लिए जयपुर नरेश को लिखे गए पत्र में ''राजस्थाना ''अर्थार्थ [राजधानियों] में एकता की इच्छा प्रकट की थी | अतः कहा जाता है कि टॉड के पहले भी राजस्थान संज्ञा प्रचलित रही थी| मुगल इतिहासकार राजपूत को बहुवचन में राजपूता शब्द लिखते थे| इसलिए अंग्रेजों ने इस राज्य का नाम राजपूताना अथार्थ राजपूतों का देश रखा | आगे चलकर राज्य की इस लौकिक संज्ञा को ही बदलकर राजस्थान कर दिया |
राजस्थान की भौगोलिक स्थिति -
राजस्थान भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तरी -पश्चिमी दिशा की ओर स्थित है | इसका समस्त भू -भाग कर्क रेखा के उत्तर में है | किंतु जलवायु की दृष्टि से यह दक्षिण- पश्चिम एशिया के उष्ण -कटिबंधीय मरुस्थलो जैसा है | इस राज्य का क्षेत्रफल 3,42,239 वर्ग किलोमीटर है तथा क्षेत्रफल की दृष्टि से देश का सबसे बड़ा राज्य है जबकि जनसंख्या की दृष्टि से इसका आठवां स्थान है |
राजस्थान का आकार अनियमित समचतुर्भुज या पतंग जैसा है| यदि इसके आकार की तुलना विश्व के देशों से की जाये तो इसका क्षेत्रफल जिंबाब्वे तथा जापान से कुछ ही कम है | किंतु यूनाइटेड- किंगडम[ब्रिटेन ] पोलैंड इटली , कांगो आदि से कही अधिक है| इस राज्य की तुलना आकृति में फ्रांस से की जा सकती है जो राजस्थान से सवा गुना बड़ा | राज्य के पश्चिम उत्तर पश्चिम में पाकिस्तान, उत्तर पूर्व में पंजाब ,उत्तर पूर्व और पूर्व में उत्तर प्रदेश ,हरियाणा तथा दिल्ली और दक्षिण में मध्य प्रदेश और गुजरात है| प्रशासनिक दृष्टि से राजस्थान 33 जिलों में विभक्त है | यह सभी जिले राजस्थान के निर्माण के पूर्व तक 19 रियासते तथा 1 केंद्र शासित प्रदेश में वर्गीकृत थे |
भू -आकृति के रूप में राजस्थान अनेक विविधताओं का प्रदेश है जिसमें एक और रेगिस्तान का विस्तार है तो दूसरी और और मैदान और पठारी भाग है | संसार की सबसे पुरानी पर्वतमाला अरावली से राज्य में है| चंबल बनास नदी वर्ष भर बहती रहती है | देती है | वनस्पति भी भूमि में के स्वरूप के अनुसार अलग-अलग है | संक्षेप में राजस्थान की भौगोलिक स्थिति इस प्रकार है-
पर्वतीय प्रदेश राजस्थान की पर्वत श्रेणियां इसे दो भागों में बांटती है | यह संपूर्ण श्रेणियां अरावली पर्वतमाला के नाम से पुकारी जाती है| यह उत्तर पूर्व में दिल्ली के पास से दक्षिण पश्चिम में गुजरात तक राजस्थान को तिरछी पार करती है |
अजमेर तक अरावली पर्वत के रूप में उठता हुआ उदयपुर, बांसवाड़ा ,डूंगरपुर ,प्रतापगढ़, मांडलगढ़ ,बूदी, कोटा, झालावाड़ की ओर से श्रंखलाओ मैं फैल गया है | अरावली पर्वत की सबसे ऊंची पहाड़ी- चोटी माउंट आबू की गुरु शिखर है| इसकी ऊंचाई समुद्र तल से 1722 मीटर है | यह हिमालय तथा नीलगिरी पर्वत माला के मध्य सबसे ऊंची चोटी है | जोधपुर में अरावली छितराई हुई छोटी-छोटी पहाड़ीयो सा फैला हुआ और जैसलमेर में ऊँचे टीलों के रूप में दिखाई देता है |
पठारी भाग-
राजस्थान का पठार "हाड़ौती के पठार" के नाम से प्रसिद्ध है | यह चित्तौड़ से बेंगू, बिजोलिया, मांडलगढ़ तथा हाड़ौती के समीप भू -भाग पर फैला हुआ है| इसका ढाल दक्षिण से उत्तरऔर पूर्व कि और है |
यह पठार पुनः दो उपभागो - विंध्य कगार और दक्षिणी पूर्वी लावा प्रदेश में बांटा गया है| पहला भाग केवल बालू का पत्थर का है| जबकि दूसरा ठोस बालूका पत्थर का है | दक्षिण-पूर्वी लावा प्रदेश में तीन कठोर कगारों से बना होने से" त्रिपठार" से जाना जाता है| इसे 'उपरमाल' कहते हैं|
इससे आगे की जानकारी आपको अगले पेज पर मिलेगी
No comments:
Post a Comment