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Friday, 2 March 2018

जैसा अन्न- वैसा मन

जैसा अन्न वैसा मन -
                              प्रकृति के सिद्धांत समय व्यक्ति अथवा क्षेत्र के साथ बदलते नहीं है प्रकृति प्रत्यय कर्म का निश्चित फल भी देती है|  हां यह हमारी समझ से परे है की फल कब मिलेगा | कहते हैं- 'वहां देर है ,अंधेर नहीं है'| 
                    'कर्म का केंद्र मन होता है| मन में इच्छा पैदा होगी तभी कर्म होगा | मन का सत्वभाव अन्न शुद्धि पर ही टिका है| सात्विक, राजस ,तामस जैसा भी अंग खाया जाएगा वैसा ही भाव मन में पैदा होगा | मनु ने तो अंदाज कोई व्यक्ति की जीवित -मृत्यु का कारण माना है | तब क्या आश्चर्य है कि अनेक बड़े-बड़े नेताओं ,अधिकारियों  के आचरण तथा उनकी संतान के आचरण शुरू हो रहे हैं  |
 ऐसा पहली बार नहीं है | हर काल में होता रहा है | जाति ,धर्म ,राजनीतिक इसमें कोई सीमा नहीं होती है| सीधा की हर जगह मिल जाते हैं|  वर्तमान में आज के नेता लोग जो सत्ता के जोर पर अपराध को ढकने में कामयाब हो जाए | लेकिन ईश्वर की नजर से कैसे बचेंगे कहते हैं | कहते है ईश्वर जिससे रुष्ट होता है, उसे खूब धन समृद्धि  देता है | 

ताकि वह  ईश्वर से बहुत दूर चला जाए | उसको याद भी नहीं करें | और जिस में प्रेम करता है उसको तिल-तिल कर जलाता है|  ताकि वह एक पल को भी दूर नहीं  हो | स्वामी राम नरेशाचार्य पत्रिका के कार्यक्रम में कहा था- 'कोई मंगल उपस्थिति हो जो हमारे जीवन को उत्कृष्ट देने वाला है तो हमारे यहां कहां जाता है हमारे पुण्य का फल है|  वैसे तो आपने देखा है ,गलत तरीके से जीवन जी कर भी आदमी मोटा हो जाता है बड़े पद पर चला जाता है धनवान हो जाता है लेकिन उसको शास्त्र कहते हैं कि यह उसके पुण्य का फल नहीं है ,पाप का फल है ,क्यों की निश्चित रूप से यह उसे दुःख देगा ,लांछित करेगा ,जेल में पहुंचाएगा ,उसकी पीढ़िया दर पीढ़िया लांछित होगी ,नष्ट हो  जाएगी  | यदि सही रीती से कोई आगे बढ़ा है तो ही वह सुख प्राप्त करता है और जीवन का जो परम  उत्कृष्ट है जहां स्थायित्व है ,उसको प्राप्त करता है|'
अथार्त प्रथम -
 शुरुआत मनुष्य धर्म से बढ़ता है और सब प्रकार की समृद्धि प्राप्त करता है तथा अपने सभी प्रतियोगिताओं से आगे भी निकल जाता है किंतु समूल  नष्ट हो जाता है|  इसका भावार्थ है अधर्म से बढ़ता है | उसका उसकी संतानों का संबंधियों का संपूर्ण जड़ सहित नाश निश्चित है|  ऐसे अन का अर्जन करने वाला यह सुनिश्चित कर जाना चाहता है कि इस फल का भोग करने वाले अपराधी असामाजिक तत्व के रूप में भी जाना जाए कुल को कलंकित भी करें तथा अंत में नष्ट हो जाए आज जिस गति से भ्रष्टाचार बढ़ रहा है भ्रष्ट लोगों के परिजन नित्य प्रतिदिन समाजकंटक के रूप में सामने आते जा रहे हैं|  हर युग में ऐसे प्रमाण सामने आते रहे पारिवारिक कलह असाध्य रोग और अकाल मृत्यु के योग बने रहते हैं आज तो इनके नाम बड़े -बड़े घोटालों में अपयश  प्राप्त करते हैं|

 हम प्रकृति की संतान है |  अपनी मर्जी से पैदा होतेहै ,न ही मर्जी से मर सकते हैं|  केवल कर्म हमारे साथ में है आज अन्न भी तामसिक हो गया है | 
  गीता 17 \10 में भोजन को परिभाषित करते हुए कहा गया कि ,झूठ- कपट ,चोरी- डकैती, धोखेबाजी आदि किसी तरह से पैसे कमाए जाए, ऐसा भोजन तामस होता है |'इसी तरह गीता के अध्याय 16\ 12 अन्यायपूर्वक धन इकठ्ठा करने वाले के लिए कहा गया कि 'आसुरी प्रकृति वाले मनुष्य का उद्देश्य धन संग्रह करना और विषयो  का भोग करना होता है| 
                                                                              इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए वह बेईमानी करते हैं ,धोखेबाजी, विश्वासघात, टैक्स की चोरी आदि करके दूसरों का हक मारकर मंदिर ,बालक, विधवा आदि का दम दबाकर और इस तरह अन्याय पाप करके धन का संचयन करना चाहते हैं | आज के सभी नेता लोग इसी व्यवसाय से जुड़े हैं वह जनता को परेशान करते हैं तथा जनता के लिए सरकार द्वारा जो भी सुविधा के पैसे आते हैं उन्हें खा जाते हैं | आजनेता लोग देश , समाज  पर भारी पड़ रहे है |
 जंक फूड, खराब भोजन और अपराधिक, भ्रष्टाचार से अर्जित समाज और देश के नवनिर्माण की सबसे बड़ी बाधा है|  पिछले 10-20  वर्षों के मंत्रियों ,मुख्य मंत्रियों, दल के नेताओं का इतिहास देखें, उनकी संतानों का आकलन आज करें ,तो सारे प्रकृति के समीकरण समझ में आ जाएंगे| और यह भी समझ में आ जाएगा कि अपने परिजनों के बड़े शुभचिंतक भी कौन होंगे,जो इनके संपूर्ण नाश व्यवस्था करके जाते हैं- रावण और कंस की तरह| 
 और यह भी तय है कि भविष्य की यही तस्वीरें भ्रष्ट होगी|  समाज को आतंकित करेगी|  पुलिस उनकी सहायता करेगी| जनता को समस्या से लड़ना पड़ेगा सत्ता का अहंकार सत्व गुण का विरोधी  होता है | सत्ता भी भ्रष्ट तरीकों से हासिल की जाने लगी है|  लोग पैसे देकर चुनाव में घोटाला करवा कर जीत जाते हैं खुद अपराधी सत्ता में बैठने लगे हैं ईश्वर उनको सदबुद्दि दें, वरना सरकारी आतंकी  ही सुख -चैन छीनने का माध्यम बन जाएगा| रक्षक ही R भक्षक हो जाएंगे|  अधिकतर नेता लोग बड़े-बड़े घोटाले करके खुद का घर कर लेते हैं इससे जनता को बहुत समस्याओं का सामना करना पड़ता है|

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